GST provisional registration details of Spices Board New Feature : Click here for Auction Report मसाला: छोटी इलायची, नीलाम की तारीख: 05-Dec-2019, नीलामकर्ता: Cardamom Planters' Association, Santhanpara, लोटों की संख्या: 94, आवक की मात्रा(कि.ग्रा.): 15129.8, बिकी मात्रा (कि.ग्रा.): 13258, अधिकतम मूल्य (रु./कि.ग्रा.): 2996.00, औसत मूल्य (रु./कि.ग्रा.): 2796.47 मसाला: छोटी इलायची, नीलाम की तारीख: 05-Dec-2019, नीलामकर्ता: The Cardamom Processing & Marketing Co-Operative Society Ltd, Kumily, लोटों की संख्या: 278 , आवक की मात्रा(कि.ग्रा.): 66537.5, बिकी मात्रा (कि.ग्रा.): 64395.7, अधिकतम मूल्य (रु./कि.ग्रा.): 3168.00, औसत मूल्य (रु./कि.ग्रा.): 2834.62 Spice: Large Cardamom, Date: 05-Dec-2019, Market: Singtam, Type: Badadana, Price (Rs./Kg): 438, Spice: Large Cardamom, Date: 05-Dec-2019, Market: Singtam, Type: Chotadana, Price (Rs./Kg): 400, Spice: Large Cardamom, Date: 05-Dec-2019, Market: Gangtok, Type: Badadana, Price (Rs./Kg): 450, Spice: Large Cardamom, Date: 05-Dec-2019, Market: Gangtok, Type: Chotadana, Price (Rs./Kg): 400, Spice: Large Cardamom, Date: 05-Dec-2019, Market: Siliguri, Type: Badadana, Price (Rs./Kg): 520, Spice: Large Cardamom, Date: 05-Dec-2019, Market: Siliguri, Type: Chotadana, Price (Rs./Kg): 407,
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गुणवत्ता सुधार संबंधी दिशानिर्देश

अंतिम अद्यतन 26-12-2014, 10:49

निर्यात का महत्‍व

निर्यात विकासशील देशों के लिए विदेशी मुद्रा का एक सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। भारत सहित सभी विकासशील देश अपनी विकास योजनाओं के लिए संसाधन जुटाने के साधन के रूप में अपने निर्यात को बढ़ाने का प्रयास करते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था मूल रूप से कृषि प्रधान है और इसलिए हमारे निर्यात प्रयासों में खाद्य और कृषि उत्पादों का निर्यात अत्यधिक महत्व रखता है। कृषि निर्यात में वृद्धि न केवल देश के लिए अतिरिक्त विदेशी मुद्रा लाती है बल्कि ऐसे उत्पादों के उत्पादन, प्रसंस्करण और निर्यात में बड़ी संख्या में शामिल लोगों को लाभान्वित करती है ।

भारत से मसालों का निर्यात

प्राचीन काल से ही भारत को मसालों की भूमि के रूप में जाना जाता रहा है। चीनी, अरबी और यूरोपीय यहां उगाए गए मसालों के लालच में भारतीय तटों पर आए। भारतीय मसालों में कालीमिर्च, अदरक, हल्दी और इलायची बहुत अधिक प्रसिद्ध हैं। विश्‍व में मसालों की खपत वर्ष दर वर्ष लगातार बढ़ रही है। विश्व बाजार में हमारे हिस्से को बढ़ाने अथवा बनाए रखने के लिए मसालों के हमारे निर्यात का विस्तार करना अनिवार्य है। यह केवल बढ़ी हुई उत्पादकता और बेहतर गुणवत्ता के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

किसानों का निर्यात और अर्थव्यवस्था

भारत मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान देश है और हमारे किसानों की समृद्धि राष्ट्र में समृद्धि लाती है। जबकि खेती के तहत प्रत्येक हेक्टेयर भूमि से उत्पादकता बढ़ाने का कोई प्रयास नहीं किया जाना चाहिए, उपज की विपणन क्षमता मुख्‍य रूप से महत्वपूर्ण है। यदि मांग में गिरावट होती है तो इससे बाजार में इसकी भरमार हो जाती है और परिणामस्वरूप कीमतें अलाभकारी हो जाती हैं। सभी वस्तुओं(कमोडिटीज) में यह अंतर्निहित समस्या है। जब कोई उत्पाद निर्यात बाजार पर भी निर्भर करता है, तो स्थिति और अधिक जटिल हो जाती है। न्यूयॉर्क या लंदन के बाजारों में मंदी केरल अथवा कर्नाटक के दूरदराज के गांवों में किसानों को प्रभावित करता है और साथ ही हमारी अर्थव्यवस्था को खराब करता है। इसलिए, उत्पादकता में वृद्धि करना और बेहतर गुणवत्ता के माध्यम से उत्पाद की विपणन क्षमता को बनाए रखना भी हमारे लिए अस्तित्व की बात है।

निर्यात हेतु खाद्य पदार्थों की गुणवत्‍ता संबंधी अपेक्षाएँ

हमारे खाद्य निर्यात के लिए विकसित देश प्रमुख बाजार हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों के अपने कड़े खाद्य कानून और विनियम हैं। कानूनों का मुख्य उद्देश्य अपने नागरिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की रक्षा करना है। वे खाद्य सामग्री के आयात की अनुमति तभी देते हैं जब खाद्य सामग्री उनके खाद्य कानूनों और विनियमों के प्रावधानों के अनुरूप हों।

खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता क्यों?

विकसित देश अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं। खाद्य पदार्थों संबंधी कानून उपभोक्ताओं को घटिया गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थ से बचाने के लिए हैं, अथवा जो अशुद्धियों अथवा जहरीले पदार्थों से दूषित होने की संभावना रखते हैं। इसलिए कोई भी खाद्य पदार्थ जिसे हम निर्यात करते हैं, चाहे वह समुद्री उत्पाद, काजू, कालीमिर्च, इलायची अथवा अदरक हो, यह महत्वपूर्ण है कि उत्पाद आयात करने वाले देश द्वारा मांगे गए गुणवत्ता मानकों के अनुरूप हो। हजारों लोगों के खाद्य जनित रोगों से संक्रमित होने अथवा यहां तक ​​कि खाद्य विषाक्तता से मरने के संदर्भ में, यह केवल न्‍यायसंगत और उचित है कि जो देश आयातित खाद्य सामग्री पर निर्भर हैं, उन्‍हें इस तरह की अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए। खाद्य सामग्री जो सड़ी हुई, खराब हो गई है, सूक्ष्म जीवों से संक्रमित हो गई है अथवा अन्य अशुद्धियों से दूषित हो गई है या तो आयात निरीक्षण अधिकारियों द्वारा नष्ट कर दी जाती है अथवा निर्यात करने वाले देश को वापस भेज दी जाती है। इससे न केवल बाजार का नुकसान होता है बल्कि निर्यातक देश की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचता है।

खाद्य उत्‍पादों की गुणवत्‍ता को प्रभावित करने वाले घटक

उत्पादन के प्रारंभिक चरण से लेकर उपभोक्ता के पास उपज पहुंचने तक किसान को कई प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इनमें कीट, सूक्ष्म जीव जो खेत को संक्रमित करते हैं, बाहरी पदार्थ जो खतरनाक या अन्यथा हो सकते हैं, जहरीले पदार्थ अथवा अशुद्धियाँ जो प्रसंस्करण में प्रयुक्त सामग्री से उत्पादों में मिल जाती हैं, उत्‍पाद को संभालने वाले लोगों के अस्वच्छ व्‍यवहारों से उत्‍पाद में सूक्ष्मजीव और गंदगी हो जाती है, साथ ही भंडारण व्‍यवहारों में कमियों के परिणामस्वरूप गुणवत्ता की हानि होती है।

मिलावटी भोजन क्या है

विकसित देशों में 'मिलावटी' शब्द का एक अलग अर्थ है। कीट, रोगाणुओं अथवा कवक से प्रभावित खाद्य पदार्थ अशुद्ध हो जाते हैं और मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त हो जाते हैं। बेकार पदार्थों की उपस्थिति, अनुमेय स्तर से ऊपर नमी की मात्रा, कीटनाशकों के अवशेष, अन्य रसायनों की उपस्थिति इत्‍यादि भी भोजन को मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त बनाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका(यू.एस.ए) और जापान जैसे आयातक देश आयातित खाद्य पदार्थों को तब रोकते हैं जब उनके पास इस बात का सबूत होता है कि ये अस्वच्छ परिस्थितियों में उत्पादित और संसाधित किए गए थे और संदूषण की मात्रा के आधार पर आगे की कार्रवाई करते हैं।

उपभोक्ता और खाद्य सामग्री में संदूषक

रोगजनक जीव जो खाद्य पदार्थों में मिल जाते हैं, उपभोक्ता को रोगी बनाते हैं। रोगाणुओं द्वारा उत्पादित विषाक्त पदार्थ खाद्य विषाक्तता का कारण बनते हैं। कृंतकों (चूहा, गिलहरी आदि कुतरने वाले जानवरों) और पक्षियों के मलमूत्र में लाखों रोगाणु होते हैं। ये जानलेवा बीमारियों के साथ-साथ टॉक्सिन के कारण जहर भी पैदा कर सकते हैं । कृंतकों के मलमूत्र में ऐसे रसायन होते हैं जो कैंसर का कारण बन सकते हैं। कुछ कवक द्वारा स्रावित विष भी कैंसर का कारण साबित हुए हैं। गंदी और अस्वच्छ परिस्थितियों में संसाधित खाद्य सामग्री को उपभोक्ताओं द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है। वे उन देशों से पैदा होने वाले किसी भी उत्पाद पर भी संदेह करना शुरू कर देते हैं जो ऐसे दूषित उत्पादों के निर्यात के दोषी हैं। इसके अलावा, उपभोक्ता खुद को संगठित करते हैं और कड़े कदम उठाने के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं। ऐसी स्थिति उत्पादक देशों के निर्यात व्यापार को गंभीर रूप से प्रभावित करती है ।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में नए रुझान

सभी विकसित देशों में कड़े स्वास्थ्य और खाद्य कानून मौजूद हैं। ये देश अक्सर नए वैज्ञानिक निष्कर्षों के आलोक में ऐसे कानूनों को संशोधित करते हैं। उदाहरण के लिए, ऐसा हो सकता है कि खाद्य पदार्थों में कुछ रोग पैदा करने वाले जीवों की उपस्थिति का पता लगाने के लिए औचक निगरानी को अनिवार्य कर दिया जाए। इसी तरह, कीटनाशक अवशेषों के सहनशीलता के स्तर में अक्सर परिवर्तन किए जाते हैं। ये देश अन्य अशुद्धियों के अनुमेय स्तरों को भी लगातार नीचे ला रहे हैं । इस प्रकार वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति निर्यात व्यापार में नई चुनौतियों को सामने लाती है। स्वास्थ्य और खाद्य संबंधी कड़े कानून संबंधित सरकार की अपने लोगों की सुरक्षा और कल्याण के लिए गंभीर चिंता को दर्शाते हैं ।

रोग पैदा करने वाले जीवों, जहरीले पदार्थों और अशुद्धियों के बारे में पूरे विश्‍व में एक नई चेतना विकसित हो रही है। इसके समानांतर, उपभोक्ता खाद्य पदार्थों से जिस उत्कृष्टता की अपेक्षा करते हैं, वह भी बढ़ रही है। इस प्रकार आयातक देशों द्वारा निर्धारित गुणवत्ता मानकों को बनाए रखने के लिए निर्यातक देश विवश हैं। खाद्य और कृषि संगठन(एफ़एओ) द्वारा किए गए अनुमानों के अनुसार, अगले दशक में खाद्य निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की जाएगी। इस बढ़ते बाजार में अपनी हिस्‍सेदारी बढ़ाना एक चुनौती के साथ-साथ अवसर भी प्रदान करता है।

हम अधिकतर विकसित देशों जैसे यू.एस.ए, यू.के, जर्मनी, अन्य यूरोपीय देशों, जापान, कनाडा इत्‍यादि को मसाले निर्यात करते हैं। इन देशों में यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत कड़े खाद्य कानून और विनियम हैं कि खाद्य पदार्थ जिनमें मसाले शामिल हैं, सुरक्षित हैं, पौष्टिक एवं स्वच्छ और स्‍वस्‍थकर परिस्थितियों में उत्‍पादित किये जाते हैं। इसलिए इन देशों में निर्यात किए जाने वाले मसाले जीवाणु संदूषण, फफूंदी, माइकोटॉक्सिन, कीटनाशक अवशेषों और अन्य प्रदूषकों सहित हानिकारक रसायनों, जानवरों, कीड़ों अथवा खेत, गोदाम, पैकेज अथवा वाहक(कैरियर) में अस्वच्छ परिस्थितियों के कारण उत्‍पन्‍न गंदगी से मुक्त होना चाहिए । खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता के बारे में आयातक देशों की चिंता को समझा जा सकता है क्योंकि दूषित भोजन के सेवन के परिणामस्वरूप इन देशों में खाद्य जनित बीमारियों और खाद्य विषाक्तता के कई मामले देखने को मिलते हैं।

कुछ मसालों की गुणवत्ता में सुधार संबंधी दिशानिर्देश निम्‍नलिखित हैं :

कालीमिर्च

आयात करने वाले देशों द्वारा निर्धारित संदूषकों की सीमा

संयुक्त राज्य अमेरिका(यू.एस.ए) को निर्यात की जाने वाली कालीमिर्च को अमेरिकन स्पाइस ट्रेड एसोसिएशन (ए.एस.टी.ए) द्वारा निर्धारित स्वच्छता विनिर्देश और खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफ.डी.ए ) द्वारा लागू विनियमों के अनुरूप होना चाहिए, ए.एस.टी.ए स्वच्छता विनिर्देशों में विश्‍लेषित नमूने में मृत कीड़ों की संख्‍या, स्तनधारी मल की मात्रा, अन्य मलमूत्र, फफूंद और/अथवा कीट संक्रमण के साथ बेरी के वजन का प्रतिशत और मौजूद बाह्य पदार्थ की मात्रा जैसे मानदंडों के लिए सीमाएं निर्धारित की हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका(यू.एस.ए) में आयातित कालीमिर्च में इन स्‍वच्‍छता विनिर्देशों को पूरा करने में असफल होने पर रोक दी जाएगी और जो रिकंडिशनिंग (दोष को दूर करने के लिए सफाई) के अधीन किया जाएगा । यदि रिकंडिशनिंग द्वारा दोषों को दूर नहीं किया जा सकता है तो सामग्री को नष्‍ट किया जा सकता है या उसके मूल देश में वापस भेजा जा सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका(यू.एस.ए) में आयातित कालीमिर्च संबंधी ए.एस.टी.ए स्‍वच्‍छता विनिर्देशों के अलावा एफ.डी.ए के दोष कार्रवाई स्‍तर का अनुपालन करना होता है, जो जब कभी निर्धारित किए जाते हैं।

कीटनाशक अवशेष

संयुक्त राज्य अमेरिका(यू.एस.ए) में निर्यातित उत्पादों में एफ.डी.ए के पास नाशीजीवनाशक अवशेषों की निगरानी के लिए निगरानी कार्यक्रम है। पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ई.पी.ए) द्वारा कीटनाशक अवशेषों के लिए सहनशीलता सीमा तय की गई है, खाद्य पदार्थों में कीटनाशक अवशेषों के सुरक्षित स्तर को लागू करने के लिए एफ.डी.ए जिम्मेदार है।

कालीमिर्च की कटाई, प्रसंस्‍करण और भंडारण में उठाए जाने वाले महत्वपूर्ण कदम

कच्चे माल की गुणवत्ता, प्रसंस्करण में उपयोग की जाने वाली विधियों तथा पैकेजिंग व विपणन तरीकों पर उत्पाद की गुणवत्ता निर्भर करती है। इसलिए, उत्पाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए, कटाई के समय से लेकर उपभोक्ता के पास पहुंचने तक इनकी लगातार देखभाल की जानी चाहिए ।

कटाई - कुछ महत्वपूर्ण पहलू

सूखी कालीमिर्च के विपणन के लिए बेलों से केवल पूरी तरह से पकी कालीमिर्च को तोड़ा जाना चाहिए। तोड़ी हुई कालीमिर्च के डंठलों की मड़ाई के लिए केवल साफ, सीमेंट अथवा कंक्रीट के फर्श का ही उपयोग किया जाना चाहिए । कभी भी गाय के गोबर से लीपे गए फर्श पर मड़ाई न करें।

हरी कालीमिर्च में 75-85% नमी होती है। हरी कालीमिर्च को रखने के लिए प्लास्टिक अथवा एल्यूमीनियम के बर्तनों का इस्तेमाल करना सबसे अच्छा है । गाय के गोबर से लीपे बांस की ट्रे, पुराने बोरे आदि संदूषण के निश्चित स्रोत हैं ।

प्रसंस्करण - उबलते पानी में एक मिनट

यदि, सुखाने से पहले, कटी हुई हरी कालीमिर्च को मैसूर स्थित केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित एक प्रसंस्करण तकनीक के अधीन प्रोसेस किया जाता है, तो उत्पाद के रंग और गुणवत्ता में काफी सुधार किया जा सकता है । इस तकनीक को कोई भी किसान आसानी से अपना सकता है।

किसी उपयुक्त बर्तन में पानी उबाल लें। हरी कालीमिर्च को उबलते पानी में एक टोकरी में डाल दें। कालीमिर्च को उबलते पानी में एक मिनट के लिए रख दें। उबलते पानी में डुबाने से कालीमिर्च में रासायनिक परिवर्तन होते हैं। कीटाणुशोधन भी इसके साथ होता है। इस प्रकार उपचारित कालीमिर्च को पर्याप्त धूप होने पर तीन अथवा चार दिनों में सुखाया जा सकता है। इस प्रसंस्करण तकनीक के कई लाभ हैं :

एक: सूखी कालीमिर्च का रंग एकसमान काला होता है; दो: कालीमिर्च रोगाणुओं से छुटकारा दिलाती है; तीन: पारंपरिक तरीकों का पालन करते समय आवश्यक 5-6 दिनों के मुकाबले कालीमिर्च को 3-4 दिनों में सुखाया जा सकता है; चार: इस तरह से उपचारित कालीमिर्च धूलरहित होती है।

नमी की मात्रा को क्‍यों नियंत्रित करें

यदि नमी की मात्रा बहुत अधिक है तो कालीमिर्च कवक के हमले के लिए अतिसंवेदनशील होगी । कवक द्वारा स्रावित जहरीले पदार्थ कालीमिर्च को कवक के हमले के लिए अतिसंवेदनशील बनाते हैं। कवक द्वारा स्रावित जहरीले पदार्थ कालीमिर्च को मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त बना देते हैं। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के वर्तमान विनिर्देश के अनुसार, सूखे कालीमिर्च की बेरियों में नमी की मात्रा वजन के हिसाब से 13 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।

स्वच्छता - पर्यावरण और व्यक्तिगत

कालीमिर्च को सुखाने और भंडारण करने के लिए उपयोग किया जाने वाला परिसर साफ और स्वच्छ होना चाहिए और धूल, जाल, अवांछित विजातीय पदार्थ जैसेकि जानवरों और पक्षियों के मलमूत्र, पत्थर के टुकड़े इत्‍यादि से मुक्त होना चाहिए। यह आवश्यक है कि प्रतिदिन परिसर को साफ किया जाए।

पक्षियों को दूर रखने के लिए नायलॉन अथवा अन्य जाल का उपयोग करके परिसर को ढक देना जाना चाहिए। कृंतकों के प्रवेश से बचने के लिए भंडारण क्षेत्र को उपयुक्त ऊंचाई की प्लास्टर वाली दीवारों से बंद कर देना चाहिए। दीवारों के खुले स्‍थान को धातु की ग्रिल से ढंकना चाहिए।

कालीमिर्च की मडाई, छानने आदि में लगे व्यक्तियों को अपना काम शुरू करने से पहले अपने हाथ और पैर को साबुन और पानी से अच्‍छी तरह से साफ करना चाहिए। प्रसंस्करण और भंडारण में इस्तेमाल होने वाले बर्तनों और रसोई के बर्तनों को हमेशा साफ रखना चाहिए। उन्हें कभी भी धूल अथवा अन्य अशुद्धियों से अथवा कीटों से दूषित नहीं होने देना चाहिए ।

कालीमिर्च को सुखाने के लिए उपयोग किए जाने वाले प्लेटफॉर्म से जुड़े गटर और अन्य पानी के आउटलेट को हमेशा साफ-सुथरा रखा जाना चाहिए।

कालीमिर्च को छानने के लिए केवल साफ बांस की ट्रे का ही प्रयोग करना चाहिए। इन ट्रे पर कभी भी गोबर नहीं लगाना चाहिए।

साफ और छानी हुई कालीमिर्च धूल और अन्य अशुद्धियों से पुन: दूषित न हो जाए, इसके लिए सावधानी बरती जानी चाहिए।

कालीमिर्च के भंडारण में ध्यान देने योग्य बातें

केवल 10 से 11 प्रतिशत तक के बीच नमी वाली कालीमिर्च को भंडारण के लिए बोरियों में पैक किया जाना चाहिए। बोरे नए, साफ, सूखे और किसी भी संदूषण से मुक्त होने चाहिए।

भंडारण कक्ष अथवा गोदामों में जहां कालीमिर्च रखी जाती है वहां अन्य पदार्थों का भंडारण नहीं किया जाना चाहिए।

ग्रेडेड अथवा गारबल्ड कालीमिर्च अलग से रखनी चाहिए । इसका अर्थ यह है कि बिना ग्रेड वाली कालीमिर्च को उन गोदामों में नहीं रखा जाना चाहिए जहां कालीमिर्च का भंडारण किया जाता है।

कालीमिर्च से भरी बोरियों को गोदामों में रखते समय फर्श पर लकड़ी के तख्तों को निभार(डनेज) के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए। यह कालीमिर्च को प्रभावित करने वाले फर्श की नमी को रोकते हैं। बोरियों को दीवारों से कम से कम 30 सेमी दूर रखा जाना चाहिए।

यदि कालीमिर्च को साफ करने और छांटने के लिए किसी यांत्रिक उपकरण का उपयोग किया जाता है, तो इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि बाहर निकली धूल, पत्थर के टुकड़े आदि कालीमिर्च में वापस न मिलें, जिसे पहले ही साफ और वर्गीकृत किया जा चुका है ।

जिन कमरों में कालीमिर्च रखी जाती है, उनके दरवाजे, खिड़कियां और वेंटिलेटर हमेशा बंद रखने चाहिए। किसी भी दरार को खुला नहीं छोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि चूहे और अन्य कीट भंडारण कक्ष में छोटे से छोटे खुले स्‍थान के माध्यम से भी प्रवेश करने में सक्षम होते हैं। यह बेहतर है कि भंडारण क्षेत्र तक जाने वाली सीढि़याँ हटाई जा सकने वाली हों। सीढ़ियों, जिन्हें आवश्यकता पड़ने पर रखा और हटाया जा सकता है, के उपयोग से चूहों के प्रवेश को प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है। गोदामों में कृतकों को दूर रखने में सहायक उपकरण रखना वांछनीय है।

कीट नियंत्रण तरीकों का व्यवस्थित रूप से पालन किया जाना चाहिए। कीटनाशकों और रासायनिक धूमकों की सीमित सही खुराक का उपयोग होना चाहिए और जिसे केवल विशेषज्ञों की देखरेख में ही लगाया जाना चाहिए।

यदि कालीमिर्च में कीटनाशकों के अवशेष पाए जाते हैं, तो ऐसे लॉट को आयातक देशों द्वारा अस्वीकार कर दिया जाएगा और निर्यातकों को ऐसी खेपों की रिकंडिशिनिंग/सफाई का भारी खर्च वहन करना होगा।

कालीमिर्च को पैक करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बोरे न केवल साफ होने चाहिए, बल्कि वे संक्रमण के प्रति उचित रूप से उपचारित होने चाहिए।

हमारी कालीमिर्च की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता केवल किसान और व्यापारी की चिंता का विषय नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह वैश्विक बाजार में हमारी छवि का प्रश्‍न है। हम उस प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा को खतरे में नहीं डाल सकते है, जो हमने सदियों से मसाला व्यापार के माध्यम से बनाई है।

निजी उद्यमियों के अलावा, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां भी अब भारत से कालीमिर्च के निर्यात में लगी हुई हैं। कालीमिर्च का निर्यात एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें किसानों की सहकारी समितियां भी उद्यम कर सकती हैं। सहकारी समितियां निर्यात के लिए कालीमिर्च के प्रसंस्करण, सफाई और पैकिंग के लिए सामान्य ढांचागत सुविधाएं आसानी से संस्थापित कर सकती हैं। इस संबंध में किसान सरकार से भी समर्थन जुटाने में सक्षम हो सकते हैं।

इलायची

एफ.डी.ए भी अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ई.पी.ए) द्वारा निर्धारित सीमाओं के अनुसार नाशीजीवनाशक अवशेषों की निगरानी के लिए निगरानी कार्यक्रम संचालित करता है। यूरोपीय संघ के अधिकांश देश, यूरोपीय संघ में प्रचलित खाद्य कानूनों के अनुसार मसालों का आयात करते हैं। नीदरलैंड में मसालों के विभिन्न गुणवत्ता मानकों के लिए विनिर्देश हैं। जर्मन ने कीटनाशकों के अवशेषों के लिए सहनशीलता के स्तर निर्धारित किए हैं। जर्मन विनिर्देशों को सबसे कठोर माना जाता है। डच कानून भी मसालों में कीटनाशकों के लिए अधिकतम अवशेष निर्धारित करता है। यू.के में खाद्य उद्योग और मसाला प्रसंस्करणकर्ता जर्मन विनिर्देशों में निर्धारित कीटनाशकों की सीमा का पालन करते हैं ।

अधिकांश यूरोपीय संघ देशों ने एफ्लाटॉक्सिन के लिए सहनशीलता(टोलरेंस) के स्तर निर्धारित किए हैं। एफ्लाटॉक्सिन बी1 और कुल एफ्लाटॉक्सिन (बी1 + बी2 + जी1 + जी2) के लिए यूरोपीय संघ देशों के विनिर्देश क्रमशः 5 पीपीबी और 10 पीपीबी हैं।

यूरोपीय संघ के सभी देशों में, मसालों में साल्मोनेला के लिए विनिर्देश है कि वह 25 ग्राम में उपस्थित न हो । खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और मसाला ग्राइंडर अंतिम उपयोग के आधार पर प्रत्येक मसाला मिश्रण के लिए माइक्रोबियल लोड निर्दिष्ट करते हैं।

कटाई- पूर्व, फसल कटाई और कटाई-पाश्चात् के प्रचालन

किसी भी वस्तु की गुणवत्ता उसकी खेती, प्रसंस्करण, पैकिंग, भंडारण और परिवहन में उपयोग किए गए इनपुट और अपनाए गए तरीकों पर निर्भर करती है। इसलिए कृषि उत्पादों के मामले में, फसल काटने से पहले के संचालन से लेकर उत्पाद उपभोक्ताओं तक पहुंचने तक निरंतर देखभाल अनिवार्य हो जाती है। विभिन्न चरणों में याद रखे जाने वाले महत्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित हैं:

फसल कटाई से पहले

  1. ञेल्लानी, आईसीआरआई-1, आईसीआरआई-2, आईसीआरआई-3, सीसीएस-1, पीवी-1, मुदिगेरे पीआई, एनजीजी इत्‍यादि जैसी वांछनीय संपुटिकावाली, गहरे हरे रंग और एकसमान बोल्ड आकार की विशेषताओं से युक्त अधिक उपज देने वाली किस्‍मों की रोपण सामग्री का ही उपयोग करें।
  2. अनुशंसित कीटनाशकों के न्यूनतम उपयोग के साथ थ्रिप्स और अन्य कीटों का नियंत्रण किया जा सकता है । जहां तक ​​संभव हो जैव कीटनाशकों का प्रयोग करें। आयातक देशों में प्रतिबंधित कीटनाशकों का कभी भी उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
  3. संपुटिका को अच्छा हरा रंग प्राप्त करने के लिए, छाया विनियमन ठीक से और समय पर किया जाना चाहिए। यदि घनी शाखाओं और बड़ी पत्तियों के कारण घनी छाया है, तो खुले क्षेत्र में 40 से 60% तक छनित प्रकाश प्रदान करने के लिए शाखाओं को काट देना चाहिए।

जून के दौरान मिट्टी में पोटेशियम (180 ग्राम/पौधा) अथवा मैग्नीशियम सल्फेट (10 ग्राम/पौधा) का प्रयोग संपुटिका के हरे रंग को बढ़ाता है ।

फसल कटाई

  1. केवल उन संपुटिकाओं की कटाई करें जो सुखाने के दौरान गाढ़ा हरा रंग प्राप्त करने के लिए पूरी तरह से पकने (स्पर्श और ड्रॉप चरण) में कम हों। इस अवस्था में कटाई से संपुटिका के लीटर वजन में मामूली वृद्धि होती है और फसल में लगभग 13% की वृद्धि होती है। इस देखभाल की प्रक्रिया के दौरान संपुटिका के विभाजन को रोकने और क्षेत्र में पक्षियों और गिलहरियों द्वारा नुकसान को रोकने में भी सहायता करता है । अपरिपक्व और अधिक परिपक्व संपुटिका की कटाई से बचना चाहिए। कीटनाशक स्प्रे को इस तरह से समायोजित किया जा सकता है जैसे कि कटाई के बाद अथवा कटाई से कम से कम 20 दिन पहले छिड़काव किया जाए ।
  2. फसल के लिए उचित वातन वाली टोकरियों अधिमानतः बांस/बेंत की टोकरियाँ का प्रयोग करें। कटाई के बाद हरे संपुटिकाओं को इकट्ठा करने के लिए कीटनाशक/उर्वरक बैग का उपयोग न करें।
  3. क्रीपिंग पुष्पगुच्छों (मालाबार) में संपुटिका तेजी से पकते हैं और इसके लिए निकटवर्ती अंतराल की आवश्यकता होती है।

फसल कटाई के बाद

  1. संपुटिका से बाहरी पदार्थ हटा दें और सूखने से पहले कटे हुए उत्पाद को साफ पानी से अच्छी तरह धो लें।
  2. ताजी कटी हुई हरी इलायची के संपुटिका को दो प्रतिशत वाशिंग सोडा के घोल में 10 मिनट के लिए भिगो दें जो सुखाने से पहले बेहतर हरा रंग बनाए रखने में मदद करता है।
  3. मूल हरे रंग को बनाए रखने के लिए देखभाल के वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना। तेजी से सूखना (जब नमी हटाने की दर गीले वजन के आधार पर प्रति घंटे पाँच से छह प्रतिशत से अधिक हो) सकारात्मक रूप से रंग प्रतिधारण की डिग्री को कम कर देता है और विभाजित और पीले संपुटिका के प्रतिशत में वृद्धि करता है। देखभाल के दूसरे और तीसरे चरण (3 से 9 घंटे) के दौरान प्रति घंटा में छह से सात प्रतिशत से अधिक नमी हटाने की दर हरे रंग की अवधारण को कम करने के लिए पाई गई। तापमान की एक विस्‍तृत शृंखला(15-60 डिग्री) और वायु प्रवाह दर (1.83-3.5 एम-आई) पर नमी हानि की दर लगभग 10% होने के आसपास स्थिर देखी गई थी। हरे रंग की अधिकतम अवधारण पूरी देखभाल प्रक्रिया के दौरान 450c के तापमान पर देखा गया था । देखभाल के अंतिम चरण के दौरान तापमान को 500c तक बढ़ाने से रंग प्रतिधारण किसी भी प्रशंसनीय डिग्री तक प्रभावित नहीं हुआ; हालांकि, इसने देखभाल के समय को कुछ घंटों तक कम करने में मदद की। देखभाल के प्रारंभिक चरण (शून्य से छह घंटे) के दौरान उच्च तापमान ने संपुटिका के हरे रंग को स्पष्ट रूप से प्रभावित किया। वायु प्रवाह प्रतिधारण के बीच एक मजबूत अंत:क्रिया देखी गई है। परिणामों से संकेत मिलते हैं कि किसी दिए गए क्‍यूरिंग तापमान के लिए वायु प्रवाह दर इष्टतम होनी चाहिए; उच्च और निम्न वायु प्रवाह दर ने क्रमशः रंग प्रतिधारण और क्‍यूरिंग अवधि को प्रभावित करती है। क्‍यूरिंग के प्रारंभिक और बाद के चरणों के दौरान इलायची के क्‍यूरिंग के लिए सापेक्ष आर्द्रता भिन्न होती है। नमी के बढ़ने और हरे रंग के नुकसान के बीच एक मजबूत अंतःक्रिया देखी गई। कमरे के तापमान पर, तैयार इलायची संपुटिका के सुरक्षित भंडारण के लिए 55 से 65% का आरएच इष्टतम पाया गया।
  4. संपुटिका की पॉलिशिंग उत्पाद को आकार और रंग के अनुसार ग्रेड देती है।
  5. नम प्रूफ कंटेनरों में स्टोर करें। इलायची के लिए 100 गेज एलओपीई अस्तर सहित जूट बैग को सबसे अधिक लागत प्रभावी पैकेजिंग सामग्री माना जाता है।
  6. सूखे उत्पाद को सुखाने के तुरंत बाद बेचा जा सकता है बशर्ते उत्पादकों को लाभकारी मूल्य मिले।

मिर्च

एफ.डी.ए भी अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ई.पी.ए) द्वारा निर्धारित सीमाओं के अनुसार नाशीजीवनाशक अवशेषों की निगरानी के लिए निगरानी कार्यक्रम संचालित करता है। यूरोपीय संघ के अधिकांश देश, यूरोपीय संघ में प्रचलित खाद्य कानूनों के अनुसार मसालों का आयात करते हैं।

अधिकांश यूरोपीय संघ देशों ने एफ्लाटॉक्सिन के लिए सहनशीलता(टोलरेंस) के स्तर निर्धारित किए हैं। एफ्लाटॉक्सिन बी1 और कुल एफ्लाटॉक्सिन (बी1 + बी2 + जी1 + जी2) के लिए यूरोपीय संघ देशों के विनिर्देश क्रमशः 5 पीपीबी और 10 पीपीबी हैं।

मसाले में साल्मोनेला के लिए यूरोपीय संघ के सभी देशों में विनिर्देश है कि 25 ग्राम में इसकी उपस्थित शून्‍य हो । खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और मसाला ग्राइंडर अंतिम उपयोग के आधार पर प्रत्येक मसाला मिश्रण के लिए माइक्रोबियल लोड निर्दिष्ट करते हैं।

फसल कटाई से पहले और कटाई के बाद के प्रचालन

किसी भी उत्पाद की गुणवत्ता उपयोग किए गए कच्चे माल की गुणवत्ता और उसके प्रसंस्करण, पैकिंग, भंडारण और परिवहन में अपनाए गए तरीकों पर निर्भर करती है । इसलिए, कृषि उत्पादों के मामले में, फसल काटने से पहले प्रचालन से लेकर उत्पाद तक उपभोक्ताओं तक पहुंचने तक निरंतर देखभाल अनिवार्य हो जाती है।

फसल कटाई से पहले प्रचालन

कीट एवं रोगों से मुक्त बीज सामग्री का चयन करने में सावधानी बरतनी चाहिए। फलों के सड़ने अथवा शीर्षारंभी क्षय(डाईबैक) वाले क्षेत्रों में, विशेषज्ञों की सिफारिश और पर्यवेक्षण के तहत बीजों को उपयुक्त कवकनाशी से उपचारित किया जा सकता है। रोपण के लिए जगह अच्छी तरह से सूखी होना चाहिए और सिंचाई के लिए सुविधाएं होनी चाहिए।

यदि फसल कीटों से प्रभावित होती है तो रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर जहां तक संभव हो जैव कीटनाशकों का प्रयोग करें। कवक रोग को नियंत्रित करने के लिए कृषि विशेषज्ञों के परामर्श से उपयुक्त कवकनाशी का उपयोग किया जा सकता है। मिर्च आयातक देशों में प्रतिबंधित कीटनाशकों का इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए। यह ध्यान में रखना होगा कि खरीदने वाले देश कीटनाशक अवशेषों के लिए आयातित मसालों की जांच करते हैं।

फसल की कटाई - महत्वपूर्ण बिंदु

फसल की कटाई सही समय पर ही करें। जब फली अच्छी तरह से पक जाती है और पौधे में ही आंशिक रूप से सूख जाती है तो उनमें बेहतर तीखापन और रंग प्रतिधारण गुण होते हैं।

कटाई के बाद की देखभाल - याद रखने योग्य बातें

कटी हुई फली को ढेर में या तो घर के अंदर अथवा छाया में 2-3 दिनों के लिए सीधी धूप से दूर रखना चाहिए ताकि एकसमान लाल रंग विकसित हो सके। आदर्श तापमान 22-25 डिग्री सेल्सियस है। इसके बाद, फली को साफकर, सूखी चटाई, सीमेंटेड अथवा कंक्रीट की सतह /छतों आदि पर फैलाकर धूप में सुखाया जाना चाहिए । यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उत्पाद में सुखाने वाले यार्ड अथवा परिसर से कोई संदूषण न मिले। सुखाने वाली सतह/चटाइयों पर मिट्टी/गाय के गोबर की परत नहीं लगानी चाहिए। फली को एकसमान सुखाने के लिए पतली परतों में फैलाना पड़ता है , जो कि फफूंदी न लगे और रंग न उड़े। सामग्री को रात के समय साफ बोरियों/तिरपाल से ढककर रखना चाहिए। जब तक फली ठीक से सूख नहीं जाती, वे अपना रंग, चमक और तीखापन खो सकती हैं। सूखी मिर्च की फलियों का सुरक्षित नमी स्तर 15 प्रतिशत से कम है। पारंपरिक धूप में सुखाने की विधि के बजाय, उत्पाद की सफाई और रंग की एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए बेहतर तरीके से सुखाने वाली प्रणाली का उपयोग किया जा सकता है।

भंडारण संबंधी सावधानियां

अच्छी तरह से सुखाई गई फली को पौधे के हिस्‍सों और विजातीय पदार्थ को हटाने के बाद साफ, सूखी बोरियों में पैक किया जाना चाहिए और नमी से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भंडारण किया जाना चाहिए। फर्श से नमी के प्रवेश को रोकने के लिए पैक किए गए बैगों के ढेर को लकड़ी के पटरों पर लगाया जाना चाहिए। बैगों को दीवार से 50 से 60 सेंटीमीटर की दूरी पर रखने समय सावधानी बरतनी चाहिए ।

उत्पाद को अधिमानतः "सुखाने के तुरंत बाद" बेचा जा सकता है, बशर्ते किसान को लाभकारी मूल्य मिले क्योंकि इसमें लंबे भंडारण से गिरावट हो सकती है। हालांकि, यदि कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं का उपयोग किया जाता है तो उत्पाद को 8-10 महीने तक भंडारित किया जा सकता है ।

सामग्री के भंडारण परिसर में कीड़े, कृन्तकों और अन्य जानवरों को प्रवेश को प्रभावी ढंग से रोका जाना चाहिए। भंडारण किए गए उत्पाद को समय-समय पर धूप में रखना चाहिए। यदि खेती, कटाई, कटाई के बाद की हैंडलिंग, प्रसंस्करण, पैकिंग, भंडारण और परिवहन के सभी चरणों के दौरान अच्छे व्‍यवहारों(प्रैक्टिसेस) प्रथाओं और अच्छी विधियों का पालन करते हुए सावधानी बरती जाए तो हम किसी भी कृषि उत्पाद में प्रदूषण को प्रभावी ढंग से रोकने और गुणवत्ता में गिरावट को रोकने में सक्षम होंगे और सुनिश्चित करेंगे कि उपभोक्‍ता संतुष्‍ट हो।

क्रेता देशों की गुणवत्ता आवश्यकताओं के अनुरूप, उपभोक्ताओं की अपेक्षाओं को पूरा करना और मूल्य प्रतिस्पर्धा बनाए रखने की क्षमता प्रमुख कारक हैं जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमारे अस्तित्व को निर्धारित करते हैं। बेहतर उत्पादकता और गुणवत्ता से किसानों की आय में वृद्धि होगी और साथ ही देश की विदेशी मुद्रा आय में वृद्धि होगी।

सूखा अदरक 

अदरक का निर्यात

ज्ञात सबसे पुराने मसालों में से एक, मनुष्य द्वारा कई शताब्दियों से अदरक का उपयोग न केवल मसाले के रूप में बल्कि औषधि के रूप में भी किया जाता रहा है। इसके मूल स्थान के बारे में निश्चित रूप से कुछ पता नहीं है लेकिन भारत को इस अनोखे मसाले का घर माना जाता है। भारतीय चिकित्सा पद्धति (आयुर्वेद) में अदरक पाचन विकारों के लिए हर समय-प्रसिद्ध इलाज रहा है। अदरक का इसके ताजे (हरे) और साथ ही सूखे रूपों में भी पाक शास्त्र और औषधियों को तैयार करने में असंख्य उपयोग किया जाता है।

भारत और चीन अदरक के दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक और निर्यातक हैं। अदरक के अन्य महत्वपूर्ण उत्पादक जमैका, नाइजीरिया, सिएरा लियोन, थाईलैंड और ऑस्ट्रेलिया हैं। भारत में उत्पादित अदरक के एक बड़े हिस्से की खपत कच्चे (हरे) रूप में घरेलू स्तर पर होती है। अदरक का निर्यात मुख्य रूप से सूखे रूप में किया जाता है। अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, जापान, सऊदी अरब, सिंगापुर, हांगकांग और कनाडा अदरक के प्रमुख आयातक देश हैं। जहां भारत ज्यादातर सूखे रूप में अदरक का निर्यात करता है, वहीं हाल ही में अदरक के तेल और ओलियोरेजिन का निर्यात भी शुरू हुआ है। अदरक के उत्पादों जैसे अदरक वाले नमकीन/सिरप, अदरक कैंडी, आदि को भी लोकप्रिय बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। खाद्य उत्पादों, फार्मास्युटिकल तैयारियों, शीतल पेय, मादक पेय, कन्फेक्शनरी, अचार आदि में सुगंध कारक तत्व के रूप में अदरक का उपयोग बहुत लोकप्रिय है।

अदरक का विश्व बाजार

भारत के अदरक निर्यात को दुनिया के अन्य उत्पादक और निर्यातक देशों से, विशेषकर चीन से, जो हाल के वर्षों में अदरक के एक प्रमुख उत्पादक के रूप में उभरा है, कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। चीन विश्व बाजार में बहुत कम कीमतों पर अदरक की आपूर्ति करता है जिससे भारत की स्थिति को खतरा पैदा हो गया है। इसलिए, अपनी कीमतों को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए अपनी फसल की उत्पादकता में सुधार करना हमारे लिए अनिवार्य हो गया है। बेशक, भारतीय अदरक में बेहतर आंतरिक गुणवत्ता का लाभ मिलता है। हालांकि, फसल कटाई, कटाई के बाद की हैंडलिंग, प्रसंस्करण और भंडारण के दौरान बाहरी स्रोतों से संदूषण, भारतीय उत्पाद को आयात करने वाले उन देशों के लिए, जो 'स्वच्छ मसालों' पर जोर देते हैं, अक्सर अस्वीकार्य बना देता है। इस चुनौती का सामना करने के लिए हमें उत्पाद को दूषित होने से बचाने और इसकी आंतरिक गुणवत्ता को बनाए रखने के गहन प्रयास करने होंगे। यह लक्ष्य मार्केटरों और व्यापारियों के सामूहिक प्रयासों से ही प्राप्त किया जा सकता है। भारत के अदरक की बेहतर गुणवत्ता और बेहतर उत्पादकता हमें अन्य उत्पादक देशों से प्रतिस्पर्धा का सफलतापूर्वक सामना करने में सक्षम बनाएगी।

आयातक देशों द्वारा निर्धारित संदूषकों की सीमा

संयुक्त राज्य अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले सूखे अदरक को अमेरिकन स्पाइस ट्रेड एसोसिएशन (ASTA) द्वारा निर्धारित स्वच्छता विनिर्देशों के अनुरूप होना चाहिए और इसे खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) द्वारा लागू नियमों का भी पालन करना चाहिए। एएसटीए स्वच्छता विनिर्देश मानदंडों के लिए सीमाएं निर्धारित करता है, जैसे विश्लेषण किए गए नमूने में मृत कीड़ों की संख्या, स्तनधारी जीवों के मल की मात्रा, अन्य प्रकार के मल, मोल्ड और I या कीट संक्रमण वाले टुकड़ों का वजन के अनुसार प्रतिशत और मौजूद बाहरी पदार्थ की सीमा। संयुक्त राज्य अमेरिका में आयातित सूखा अदरक को इन स्वच्छता विनिर्देशों को पूरा करने में विफल रहने पर रोक लिया जाएगा और रीकंडीशनिंग (दोष को दूर करने के लिए सफाई) के लिए भेज दिया जाएगा। यदि लॉट की रीकंडीशनिंग करके दोषों को दूर नहीं किया जा सकता है तो लॉट को नष्ट किया जा सकता है या वापस उस देश में निर्यात किया जा सकता है जहां से वह आया था।

अदरक में फसल कटाई से पहले और फसल कटाई के बाद की प्रक्रियाएं

किसी भी उत्पाद की गुणवत्ता, कच्चे माल की गुणवत्ता और प्रसंस्करण में अपनाई गई प्रक्रियाओं, जैसे पैकेजिंग भंडारण और परिवहन, पर निर्भर करती है। इसलिए, कृषि उत्पादों के मामले में, फसल की कटाई से पहले के कार्यों से लेकर उत्पादों के उपभोक्ताओं तक पहुंचने तक, निरंतर देखभाल किया जाना अनिवार्य हो जाता है।

फसल कटाई से पहले प्रक्रिया - कुछ महत्वपूर्ण पहलू

रोपण सामग्री को यदि आवश्यक हो तो उपयुक्त कीटनाशी/कवकनाशी दवाओं से उपचारित किया जा सकता है, लेकिन केवल विशेषज्ञों की सिफारिश और पर्यवेक्षण के साथ। भारत से अदरक आयात करने वाले देशों में प्रतिबंधित कीटनाशकों का इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए। यदि फसल रोग या कीड़ों से प्रभावित हो जाती है, तो कीटनाशी या कवकनाशी दवाओं का उपयोग केवल निर्यातक से परामर्श करने के बाद और उनके द्वारा अनुशंसित खुराक में और समय पर ही करें। याद रखें: आयातक देश हमारे द्वारा निर्यात किए जाने वाले अदरक में कीटनाशक के अवशेषों की जांच करते हैं।

फसल कटाई-महत्वपूर्ण बिंदु

प्रकंद को चोट से बचाने के लिए फसल कटाई सावधानी से की जानी चाहिए। फसल कटाई हुए प्रकंदों को धो लेना चाहिए ताकि उनसे चिपकी हुई मिट्टी निकल जाए। इससे सूखे उत्पाद का एक समान रंग प्राप्त होने में मदद मिलती है। यदि प्रकंदों को लंबे समय तक ढेर बनाकर रखा जाता है तो उनमें किण्वन शुरू हो सकता है।

प्रसंस्करण - छीलने में याद रखने योग्य बातें

छिली हुई सतह पर किसी बाहरी पदार्थ के जमा होने से बचने के लिए प्रकन्द को धो कर उसपर से चिपकी हुई मिट्टी या गंदगी को साफ करना जरूरी है। खुरचते समय, इस बात का अत्यधिक ध्यान रखा जाना चाहिए कि बाहरी त्वचा के ठीक नीचे स्थित ओलियोरेजिन कोशिकाएं न फट जाएं। ओलियोरेजिन कोशिकाओं के नष्ट होने से अदरक की आंतरिक गुणवत्ता प्रभावित होगी। प्रकंद को छीलने के लिए लकड़ी या बांस या अन्य उपयुक्त सामग्री के धारदार टुकड़ों का उपयोग करना बेहतर होता है। लोहे के चाकू छिली गई सतहों पर काले धब्बे छोड़ते हैं जिससे प्रकंदों का रंग प्रभावित होता है। छिले हुए प्रकंदों को केवल साफ बर्तनों में ही इकट्ठा करने का ध्यान रखना चाहिए। कोई भी गंदगी या बाहरी पदार्थ जो प्रकंद की गीली छिली हुई सतह पर लग जाती है, सूखने पर उसमें चिपक जाएगी।

सुखाना

अदरक को केवल साफ सतहों पर ही सुखाना चाहिए ताकि उत्पाद किसी बाहरी पदार्थ से दूषित न होना सुनिश्चित हो सके। अदरक को सुखाने के लिए केवल साफ बांस की चटाई जिसे गाय के गोबर, या सीमेंट से लेपित नहीं किया गया है! अच्छी तरह से धोकर साफ़ की गई कंक्रीट की सतहों या अन्य उपयुक्त साफ सतहों का ही उपयोग किया जाना चाहिए। अदरक को 8-10% के सुरक्षित नमी स्तर तक सुखाना चाहिए। जहां भी संभव हो, सोलर या कृत्रिम ड्रायर्स का उपयोग करके सुखाने की बेहतर विधियों का उपयोग किया जा सकता है। सुखाने की प्रक्रिया के दौरान प्रकंदों पर फफूंदी लगने से बचने के लिए सावधानी बरती जानी चाहिए। अनुचित तरीके से सुखाया गया अदरक फंफूदी के विकास के प्रति अतिसंवेदनशील होता है। अदरक पर उगने वाला "एस्परगिलस फ्लेवस" के नाम से जाना जाने वाला सफेद फंफूदी स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक "एफ्लाटॉक्सिन" उत्पन्न करता है। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि अच्छी तरह से सुखाई गई अदरक अनुचित तरीके से सुखाई गई लॉट के साथ न मिलने पाए क्योंकि इससे दोनों लॉट में फफूंदी का संक्रमण हो सकता है।
भारत से निर्यात किया जाने वाला थोक अदरक छिले हुए और सुखाए हुए (बिना ब्लीच किए गए) रूप में होता है। कुछ मात्रा मुख्य रूप से मध्य पूर्व के देशों को 'ब्लीच किए गए' रूप में भी निर्यात की जाती है।

ब्लीच किया गया अदरक - प्रक्रिया

ब्लीच किया गया अदरक बुझे हुए चूने के घोल में ताजा अदरक को डुबो कर तैयार किया जाता है। जैसे ही प्रकंदों का पानी सूख जाता है, उन्हें फिर से घोल में डुबा दिया जाता है। यह प्रक्रिया तब तक दोहराई जाती है जब तक कि प्रकंद एक समान सफेद रंग का न हो जाए। साधारण विधि से सुखाए गए अदरक को भी इस विधि से ब्लीच किया जा सकता है। ब्लीच किए गए अदरक में गुणवत्ता लंबे समय तक बनी रहती है; हालांकि संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, कनाडा और जापान बिना ब्लीच किए अदरक को पसंद करते हैं क्योंकि ब्लीच किए गए अदरक में कैल्शियम की मात्रा अनुमति प्राप्त सीमा से अधिक होती है।

पैकिंग

सूखे अदरक को पैक करने के लिए नए और साफ बैग का ही उपयोग करना चाहिए। सूखे अदरक को पैक करने के लिए पॉलिथीन लेमिनेटेड बोरियों का उपयोग करना बेहतर होता है।

भंडारण - कुछ सावधानियां

सूखे अदरक को संग्रहित करते समय उसे नमी से बचाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। बोरियों में फर्श से नमी के प्रवेश को रोकने के लिए पैक की गई बोरियों का ढेर लगाने के लिए लकड़ी के बक्से के डनेज का उपयोग किया जाना चाहिए। बोरियों का ढेर लगाने में उन्हें दीवारों से 50 से 60 से.मी. तक दूर रखने की सावधानी बरतनी चाहिए।
सूखे अदरक पर किसी भी परिस्थिति में कीटनाशक का सीधे उपयोग नहीं करना चाहिए। यदि अदरक को अधिक समय तक भंडारित किया जाता है तो फुमिगेशन का कार्य केवल अधिकृत व्यक्तियों को ही सौंपा जाना चाहिए।
उस परिसर में जहां अदरक संग्रहीत किया जाता है, कीड़ों, कृन्तकों और अन्य जंतुओं को प्रवेश करने से प्रभावी ढंग से रोका जाना चाहिए। संग्रहीत अदरक को समय-समय पर धूप में रखना चाहिए। अदरक को लंबे समय तक संग्रहीत करने से इसका सुगंध, स्वाद और तीखापन खराब हो जाएगा।
अगर खेती की अच्छी विधियों, फसल कटाई की अच्छी विधियों, अच्छी प्रसंस्करण विधियों और अच्छी पैकिंग, भंडारण और परिवहन उपायों को अपनाकर, बुआई से लेकर, फसल कटाई, फसल कटाई के बाद संभाल, प्रसंस्करण, पैकिंग, भंडारण और परिवहन तक सावधानी बरती जाएगी तो हम मसालों सहित किसी भी कृषि उपज में, किसी भी रूप में उत्पन्न होने वाले संदूषण को रोकने और उपभोक्ता तक पहुंचने तक इसे संदूषण के सभी स्रोतों से बचाए रखने में सक्षम होंगे।

भारत के अदरक निर्यात का भविष्य

खरीदने वाले देशों की आवश्यकताओं के अनुरूप सूखे अदरक की ही विश्व बाजार में मांग होगी जो अब एक 'खरीददार' बाजार है। खरीदने वाले देशों की गुणवत्ता आवश्यकताओं के अनुरूप और मूल्य का प्रतिस्पर्धात्मक होना वे प्रमुख कारक हैं जो आज अंतर्राष्ट्रीय बाजार में हमारे अस्तित्व को निर्धारित करते हैं।
यदि हम उत्पादकता बढ़ाने और गुणवत्ता में सुधार करने में सक्षम होते हैं, तो भारत इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम होगा या शायद इससे आगे भी निकल जाएगा। दूसरे शब्दों में, इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए हमें मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता और गुणवत्ता निरंतरता बनाए रखनी होगी। बेहतर उत्पादकता और गुणवत्ता से किसानों की आय में और देश की विदेशी मुद्रा आय में वृद्धि होगी जो हमारी समृद्धि और प्रगति के लिए आवश्यक है।

जीरा और सौंफ

फसल कटाई से पहले और फसल कटाई के बाद की प्रक्रियाएं

किसी भी उत्पाद की गुणवत्ता, कच्चे माल की गुणवत्ता और प्रसंस्करण, पैकेजिंग भंडारण और परिवहन में अपनाई गई प्रक्रियाओं पर निर्भर करती है। इसलिए, कृषि उत्पादों के मामले में, फसल की कटाई से पहले के कार्यों से लेकर उत्पादों के उपभोक्ताओं तक पहुंचने तक, निरंतर देखभाल करना अनिवार्य हो जाता है।

फसल कटाई से पहले प्रक्रिया - कुछ महत्वपूर्ण पहलू

रोपण सामग्री को उपयुक्त कीटनाशी/कवकनाशी दवाओं से उपचारित किया जा सकता है, लेकिन केवल विशेषज्ञों की सिफारिश और पर्यवेक्षण के साथ। जिन कीटनाशकों पर आयातक देशों में प्रतिबंध है, जीरा और सौंफ में उनका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। यदि फसल बीमारियों से प्रभावित है या कीटों से संक्रमित है, तो कीटनाशी या कवकनाशी दवाओं का उपयोग केवल विशेषज्ञों से परामर्श करने के बाद और उनके द्वारा अनुशंसित खुराक में और समय पर ही करें। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि आयातक देशों द्वारा कीटनाशक दवाओं के अवशेषों की उपस्थिति के लिए जीरा और सौंफ की जांच की जा रही है।

फसल कटाई/ महत्वपूर्ण बिंदु

फसल की कटाई केवल तभी करें जब वह पूरी तरह से पक जाए। फसल के पकने का संकेत तने के आधार सहित पूरे पौधे के सूख जाने से मिलता है। फसल की कटाई करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बीज को कोई नुकसान न हो।

प्रसंस्करण- याद रखने योग्य बातें

जीरा और सौंफ के प्रसंस्करण में सुखाना और सफाई का कार्य शामिल है। धूप में सुखाने का कार्य साफ किए गए सीमेंट से बने अहाते या अन्य उपयुक्त साफ सतहों पर किया जाता है। एक समान रूप से सूखना सुनिश्चित करने के लिए सामग्री को बीच-बीच में पलट दिया जाता है। बारिश से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रात के समय सामग्री का ढेर बनाकर उसे ढंक दिया जाना चाहिए। उत्पाद के रूप-रंग में सुधार के लिए किसी भी रंग सामग्री का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि आयात करने वाले देशों द्वारा रसायनों और कृत्रिम रंगों पर अत्यधिक आपत्ति जताया जाता है।

भंडारण सावधानियां

सामग्री को इस प्रकार संग्रहित किया जाना चाहिए, ताकि नमी से सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। बोरियों में फर्श से नमी के प्रवेश को रोकने के लिए पैक की गई बोरियों का ढेर लगाने के लिए डनेज प्रदान किया जाना चाहिए। बोरियों का ढेर लगाने में उन्हें दीवारों से 50 से 60 से.मी. तक दूर रखने की सावधानी बरतनी चाहिए।

सूखी सामग्री पर किसी भी परिस्थिति में किसी भी कीटनाशक का सीधे उपयोग नहीं करना चाहिए। संग्रहीत सामग्री का एक निश्चित अवधि के अन्तराल पर फ्यूमिगेशन किया जाना चाहिए जिसके लिए केवल अधिकृत व्यक्तियों को ही लगाया जाना चाहिए।

उस परिसर में जहां सामग्री को संग्रहीत किया जाता है, कीड़ों, कृन्तकों और अन्य जंतुओं को प्रवेश करने से प्रभावी ढंग से रोका जाना चाहिए। संग्रहीत उत्पाद को समय-समय पर धूप में रखना चाहिए।

यदि खेती, फसल कटाई, फसल कटाई के बाद की प्रक्रियाओं, प्रसंस्करण, पैकिंग, भंडारण और परिवहन के सभी चरणों में अच्छी विधियों और तरीकों का पालन करके सावधानी बरती जाए, तो हम किसी भी कृषि उत्पाद में संदूषण और गुणवत्ता में गिरावट को रोकने और उपभोक्ता संतुष्टि सुनिश्चित करने में सक्षम होंगे।

खरीदने वाले देशों की गुणवत्ता अपेक्षाओं के अनुरूप और मूल्य का प्रतिस्पर्धात्मक होना वे प्रमुख कारक हैं जो आज अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमारे अस्तित्व को निर्धारित करते हैं। बेहतर उत्पादकता और गुणवत्ता से किसानों की आय में और देश की विदेशी मुद्रा आय में वृद्धि होगी जो हमारी विकासपरक गतिविधियों के लिए आवश्यक है।

कहावत 'उत्पादन, प्रक्रिया और समृद्धि' भारत से मसालों के निर्यात के मामले में पूरी तरह सत्य साबित होती है। संदेश बिलकुल स्पष्ट है - हमें अधिक उत्पादन और बेहतर उत्पादकता के माध्यम से अधिक मात्रा में जीरा और सौंफ का उत्पादन करना होगा ताकि घरेलू और निर्यात बाजारों की मांगों को पूरा किया जा सके और अच्छी प्रसंस्करण विधियों को अपना कर प्रक्रिया पूरी करते हुए उत्पाद का मूल्यवर्धन करना होगा और निश्चित रूप से आयात करने वाले देशों की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले उत्पाद का निर्यात करना होगा, जिससे निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।

हल्दी

हल्दी में फसल कटाई से पहले और फसल कटाई के बाद की प्रक्रियाएं

किसी भी उत्पाद की गुणवत्ता, कच्चे माल की गुणवत्ता और प्रसंस्करण, पैकिंग, भंडारण और परिवहन में अपनाई गई प्रक्रियाओं पर निर्भर करती है। इसलिए, कृषि उत्पादों के मामले में, फसल की कटाई से पहले के कार्यों से लेकर उत्पादों के उपभोक्ताओं तक पहुंचने तक, निरंतर देखभाल करना अनिवार्य हो जाता है।

फसल कटाई से पहले प्रक्रिया - कुछ महत्वपूर्ण पहलू

रोपण सामग्री को उपयुक्त कीटनाशी/कवकनाशी दवाओं से उपचारित किया जा सकता है, लेकिन केवल विशेषज्ञों की सिफारिश और पर्यवेक्षण के साथ। भारत से हल्दी आयात करने वाले देशों में प्रतिबंधित कीटनाशकों का इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए। यदि फसल बीमारियों से प्रभावित है या कीटों से संक्रमित है, तो कीटनाशी या कवकनाशी दवाओं का उपयोग केवल विशेषज्ञों से परामर्श करने के बाद और उनके द्वारा अनुशंसित खुराक में और समय पर ही करें। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि आयातक देशों द्वारा कीटनाशक दवाओं के अवशेषों की उपस्थिति के लिए हल्दी की जांच की जा रही है।

फसल कटाई-महत्वपूर्ण बिंदु

फसल की कटाई केवल तभी करें जब वह पूरी तरह से पक जाए। फसल के पकने का संकेत तने के आधार सहित पूरे पौधे के सूख जाने से मिलता है। फसल की कटाई करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रकन्दों को कोई नुकसान न हो। पत्तेदार तनों को उसके बाद काट दिया जाता है, जड़ों को उखाड़ कर उससे चिपकी हुई मिट्टी को हिलाकर झाड़ दिया जाता है। प्रकंदों को पानी से अच्छी तरह धोया जाता है ताकि उनमें चिपकी हुई मिट्टी और गंदगी निकल जाए। कंद से लगी हुई अंगुलियों को अलग कर दिया जाता है।

प्रसंस्करण- याद रखने योग्य बातें

हल्दी के प्रसंस्करण में उसे पकाना, सुखाना और पॉलिश करना शामिल है। हल्दी के कंद और अंगुलियों को अच्छी तरह से साफ करके अलग-अलग पकाया जाता है। पकाने का काम कच्चे प्रकंदों को उपयुक्त बर्तनों में डालकर, पर्याप्त मात्रा में पानी भरकर और फिर उबालकर किया जाता है। उबालते समय, पानी पर्याप्त मात्रा में मिलाना चाहिए ताकि प्रकंद पूरी तरह से ढक जाएं और एक समान ताप सुनिश्चित हो सके। प्रकंदों को इष्टतम स्तर पर पकाना महत्वपूर्ण है क्योंकि अधिक पकाने से रंग खराब हो जाता है और अधपका पकाने से उत्पाद भंगुर हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप सुखाने और पॉलिश करने के दौरान प्रकंद टूट जाते हैं। एक बार जब बर्तन में पानी उबलने लगता है तो उसके बाद पकने में 45-60 मिनट का समय लग सकता है। इष्टतम स्तर तक पकने का संकेत तरल में झाग आने और हल्दी की विशिष्ट सुगंध निकलने से मिलता है।

पकाई हुई हल्दी को धूप में सुखाने का कार्य साफ किए गए सीमेंट से बने अहाते या अन्य उपयुक्त साफ सतहों पर किया जाता है। एक समान रूप से सूखना सुनिश्चित करने के लिए सामग्री को बीच-बीच में पलट दिया जाता है। बारिश से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रात के समय सामग्री का ढेर बनाकर उसे ढंक दिया जाना चाहिए। यदि प्रकंद सूखने की प्रक्रिया के दौरान बारिश से प्रभावित होते हैं तो इसका पीला रंग नारंगी लाल रंग में बदल सकता है, सुखाने में 10-15 दिन लग सकते हैं। ठीक से सूख जाने पर प्रकंद सख्त हो जाते हैं, लगभग पथरीले और भंगुर होते हैं और एक समान पीले रंग के होते हैं। सुखाई गई हल्दी को ऐसे ही या पॉलिश करने के बाद बाजार में भेज दिया जाता है। पॉलिश करने से उत्पाद सुंदर दिखाई देने लगता है। सुखाये हुए प्रकंदों को मैनुअल या यांत्रिक साधनों का उपयोग करके पॉलिश किया जाता है। मैनुअल पॉलिशिंग में सूखी हल्दी फिंगरों को एक सख्त सतह पर रगड़ना या उन्हें बोरे में लपेटकर पैरों से रौंदना शामिल होता है। इसका उन्नत तरीका हाथ से चलने वाले बैरल या केंद्रीय धुरी पर लगे ड्रम का उपयोग करना है, जिसकी दीवारें धातु की उभरे दानेदार जाली से बने होते हैं। जब हल्दी से भरे ड्रम को घुमाया जाता है, तो इसकी सतह का जाली से घर्षण होने के साथ-साथ ड्रम के अंदर लुढ़कते समय एक-दूसरे से भी रगड़ने से इसकी पॉलिशिंग हो जाती है। हल्दी को बिजली से चलने वाले ड्रमों में भी पॉलिश किया जाता है।

उत्पाद के रूप-रंग में सुधार के लिए पॉलिशिंग के दौरान या उसके बाद में किसी भी रंग सामग्री का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि आयात करने वाले देशों द्वारा रसायनों और कृत्रिम रंगों पर अत्यधिक आपत्ति जताया जाता है।

पैकिंग

सुखाई गई हल्दी को पैक करने के लिए केवल नए और साफ बैग का ही इस्तेमाल करना चाहिए। पॉलीथिन लेमिनेटेड टाट के बोरे का उपयोग करना बेहतर होता है।

भंडारण सावधानियां

हल्दी को इस प्रकार संग्रहित किया जाना चाहिए, ताकि नमी से सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। बोरियों में फर्श से नमी के प्रवेश को रोकने के लिए पैक की गई बोरियों का ढेर लगाने के लिए डनेज प्रदान किया जाना चाहिए। बोरियों का ढेर लगाने में उन्हें दीवारों से 50 से 60 से.मी. तक दूर रखने की सावधानी बरतनी चाहिए।

सुखाई गई हल्दी पर किसी भी परिस्थिति में कीटनाशक का सीधे उपयोग नहीं करना चाहिए। संग्रहीत हल्दी का एक निश्चित अवधि के अन्तराल पर फ्यूमिगेशन किया जाना चाहिए जिसके लिए केवल अधिकृत व्यक्तियों को ही लगाया जाना चाहिए।

उस परिसर में जहां हल्दी को संग्रहीत किया जाता है, कीड़ों, कृन्तकों और अन्य जंतुओं को प्रवेश करने से प्रभावी ढंग से रोका जाना चाहिए। संग्रहीत हल्दी को समय-समय पर धूप में भी रखना चाहिए।

उस परिसर में जहां हल्दी को संग्रहीत किया जाता है, कीड़ों, कृन्तकों और अन्य जंतुओं को प्रवेश करने से प्रभावी ढंग से रोका जाना चाहिए। संग्रहीत हल्दी को समय-समय पर धूप में भी रखना चाहिए। यदि खेती, फसल कटाई, फसल कटाई के बाद की प्रक्रियाओं, प्रसंस्करण, पैकिंग, भंडारण और परिवहन के सभी चरणों में अच्छी विधियों और तरीकों का पालन करके सावधानी बरती जाए, तो हम हल्दी सहित किसी भी कृषि उत्पाद में संदूषण और गुणवत्ता में गिरावट को रोकने और उपभोक्ता संतुष्टि सुनिश्चित करने में सक्षम होंगे।

खरीदने वाले देशों की गुणवत्ता आवश्यकताओं के अनुरूप और मूल्य का प्रतिस्पर्धात्मक होना वे प्रमुख कारक हैं जो आज अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमारे अस्तित्व को निर्धारित करते हैं। बेहतर उत्पादकता और गुणवत्ता से किसानों की आय में और देश की विदेशी मुद्रा आय में वृद्धि होगी जो हमारी विकासपरक गतिविधियों के लिए आवश्यक है।

कहावत 'उत्पादन, प्रक्रिया और समृद्धि' भारत से मसालों के निर्यात के मामले में पूरी तरह सत्य साबित होती है और हल्दी इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। संदेश बिलकुल स्पष्ट है - हमें अधिक उत्पादन और बेहतर उत्पादकता के माध्यम से अधिक मात्रा में हल्दी का उत्पादन करना होगा ताकि घरेलू और निर्यात बाजारों की मांगों को पूरा किया जा सके और अच्छी प्रसंस्करण विधियों को अपना कर प्रक्रिया पूरी करते हुए उत्पाद का मूल्यवर्धन करना होगा और निश्चित रूप से आयात करने वाले देशों की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले उत्पाद का निर्यात करना होगा, जिससे निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।