अनुसंधान विशिष्टताएँ
अनुसंधान विशिष्टताएँ
छोटी इलायची
कृषि-विज्ञान व मृदा-विज्ञान
पौधशाला-तैयारी, रोपण तरीके, पोषक प्रबंधन एवँ यथोचित सिंचाई सारणी जैसे विभिन्न कृषि तकनीकोँ केलिए कृषि-कार्य विकसित किए गए और रोपकोँ को हस्तांतरित किए गए।
इलायची केलिए उर्वरकोँ के मृदा-व-पर्णीय प्रयोग की एक लाभकारी समय सारणी स्थापित की गै, जिसके परिणामस्वरूप मृदा-अनुप्रयोग की तुलना मेँ उर्वरक खर्च मेँ 33% की बचत हुई ।
ज़िंक एवँ बोरोन की कमी केलिए उपचारी उपाय विकसित किया ।
मृदा-विश्लेषण और उर्वरक सिफारिशेँ नेमी तौर
एन.एच. एम परियोजना के अंतर्गत केरल का सॉयल मैपिंग आयोजित किया गया । इडुक्की और कोट्टयम जिलोँ के सभी पंचायतोँ से नमूनोँ के विश्लेषण हेतु “केरल के कृषि पारिस्थितिक-तंत्र केलिए मृदा आधारित पौधा पोषक प्रबंधन प्लान चरण-1” पर परियोजना कार्यांवित की गई।
इलायची उत्पादित क्षेत्रों में मृदा अवकर्षण के मामलों-सूक्ष्म पोषकोँ/गौण पोषकोँ की कमी, मृदा पी एच मेँ गिरावट एवं सुस्थिरता का नाश- का अध्ययन किया गया
इस संस्थान ने केरल, तमिलनाडु एवं कर्नाटक के रोपकोँ से 1,00,000 से भी ज़्यादा इलायची मृदा नमूनों क विश्लेषण किया है, और बहुत ही यथोचित एवँ संतुलित सिफारिशें प्रदान की थीं।
एकीकृत पोषक प्रबंध्न (आई एम एम), जैव उर्वरक, कम्पोस्टिंग, पारम्परिक जैव आदानों
इलायची केलिए परिस्थिति अनुकूल खेत-प्रथाएँ, जैव उत्पादन प्रणालियाँ एवँ अच्छी कृषि प्रथाएँ व्यवस्थित की गई।
इलायची की खेती केलिए फार्म मशीनीकरण कार्यक्रम चलाए गए। इलायची बागानोँ मेँ विविध-खेत-कार्योँ को च्लाने हेतु इलायचि शुष्कक के बायोमास गैसिफायर मॉडल, इलायची शुष्कक का डीज़ल मॉडल एवँ सुधरे इलायची शुष्कक ((कार्डी टाइप) जैसे इलायची शुष्ककोँ तथ वीडर, वॉशिंग मशीन, पिट मेकर जैसे विविध यांत्रिक उपायों का मूल्यांकन किया गया।
केंचुआ कम्पोस्ट उत्पादन जीवगतिकी प्रदर्शन
फसल सुधार
पश्चिमी घाटोँ के क्षेत्र मेँ छोटीय इलायची जेर्मप्लासम की सूची बनाना और संग्रहण चलाया गया।
विभिन्न इलायची ज़ोणों से 500 से भी अधिक इलायची की जेर्मप्लासम प्राप्तियोँ का संग्रहण किया गया। मैलाडुम्पारा एवँ सकलेश्पुर के राष्ट्रीय इलायची जेर्मप्लासम संरक्षणालय मेँ संरक्षित रखा गया।
फसल सुधार कार्यक्रमों मेम उपयोग हेतु विभिन्न वास-स्थानोँ की वंशीय विभिन्नतावाली इलायची को पहचानने हेतु मूल्यांकन-जांच चलाए गए।
उच्च उपज देनेवाले निम्नलिखितइलाय्ची चयनों का निर्मोचन किया गया:
आई सी आर आई-1, आई सी आर आई-2, आई सी आर आई-5, आई सी आर आई-6, आई सी आर आई-7 (केरल ज़ोण केलिए)
आई सी आर आई-3 व आई सी आर आई-8 (कर्नाटक ज़ोन केलिए)
आई सी आर आई-4 (तमिलनाडु ज़ोन केलिए)
निर्मोचित चयनों ने प्रबंधन के संयत(मामूली) स्तरों के अधीन 650 से 800 कि.ग्रा./हे. की उच्च उपज शक्यता दर्शाई है।
इलायची और वैनिला के प्रजनन व्यवहार और पराग जीवविज्ञान का अध्ययन किया गया।
इलायची इलाके का एक पादप अध्ययन कैलेंडर बनाया गया।
मधु-मक्खी वनस्पती-जात मेँ 19 वृक्ष सहित 37 प्रजातियां शामिल हैं।
निम्नलिखित हल्दी क़िस्मों का मूल्यांकन किया गया :
पी सी टी-8, पी सी टी-बी, पी सी टी-14, बी एस आर-1 एवं सी ओ-1
को-1 एवं बी एस आर-1 केरल के उच्च तुंगतावाले प्रदेशों केलिए सबसे उपयुक्त हैं।
छोटी इलायची की फिलहाल निर्मोचित किस्में
वयनाड केलिए आई सी आर आई-7(एम एच सी-12)कर्नाटक केलिए आई सी आर आई-8 (एस के पी-170)
आर आर एस सकलेशपुर में विकसित आशाजनक इलायची संकर
जैव प्रौद्योगिकी
निम्नलिखित केलिए सूक्ष्म प्रजनन प्रणालियां विकसित की :
छोटी इलायची
बडी इलायची
वैनिला
काली कालीमिर्च
अदरक
हल्दी
शाकीय मसाले जैसेकि ओरगेनो,पुदीना,सेज,थाइम
बड़े पैमाने पर उत्पादन हेतु विकसित तकनोलजियाँ-10
बायोटेक फार्मों, जिनको आगे के उपयोजन हेतु एम ओ यू स्थानांतरित किए गए, की संख्या - 10
बडी इलायची और वैनिला के उत्पादित किए और किसानोँ को उनकी आपूर्ती की गई पौधे - 3.5 लाख
गरीबी हटाने और ग्रमीण महिलाओँ के शाक्तीकरण पर केरल सरकार की परियोजना ‘कुटुम्बश्री’ के सहयोग के साथ 110 बेरोज़गार युवाओँ को, खासकर गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों की महिलाओँ को ऊतक संवर्धन तकनीकोँ पर प्रशिक्षण प्रदान किया गया।
वृक्ष मसालों केलिए सूक्ष्मप्रजनन प्रणाली विकसित की जैसेकि
लौंग
गार्सीनिया
इमली
करी पत्ता ।
इलायची, अदरक एवं वैनिला केलिए अन्य ऊतक संवर्धन तक्नीकों का विकास किया गया जैसेकि
कायिक भ्रूणोद्भव
संश्लिष्ट(कृत्रिम) बीज प्रौद्योगिकी
प्रोतोप्लस्ट (जीव्द्रव्य) संवर्धन
अंतरजातीय संकरोँ का उत्पादन किया गया-वैनिला प्लैनिफोलया और वी.वईटियाना के बीच ।
अणु जैविकी सुविधा स्थापित की गई।
आण्विक मार्करों का प्रयोग करते हुए आनुवांशिक-विविधता अध्ययन चलाया गया।
किस्म-विशेष आण्विक मार्कर तैयार किया गया-मलबार टाइप केलिए।
वाइरस सूचीकरण प्रोटोकोलों का मंकीकरण किया गया-कालिमिर्च और इलायची केलिए।
पूरा किया : कार्डमम ट्रैंसक्रिप्टोम सीक्वेंसिंग
छोटी इलायची, कालीमिर्च और बड़ी इलायची के ऊतक संवर्धित पौधे
पादप रोगविज्ञान प्रभाग
संपुटिका सड़न, राइज़ोम सड़न एवं पौधशाला सदन के कारक जीवों को पहचाना गया और गुणविशेषताएँ व्यक्त की गईं।
एकीकृत रोग प्रबंधन (आई पी एम) तंत्रों का विकास किया गया ।
जेर्मप्लासम प्राप्तियों में फाइटोफ्थोरा की सहायता हेतु सह्य लाइनें पहचानी गईं।
जाँचों के पश्चात् संपुटिका सड़न, राइज़ोम एवं पादप सड़न रोगों के नियंत्रण में जैव-नियंत्रक अभिकारक ट्राइकोडेरमा एस पी प्रभावकारी पाया गया।
ट्राइकोडेरमा एवं स्यूडोमोनास जैव अभिकारकों का उत्पादन किया गया और कृषकों को आपूर्ति की गई ।
वी ए एम केलिए बहुमात्रिक गुणन प्रोटोकॉल विकसित किया गया जो इलायची पादपों की वृद्धि और ओज सुधारने और मृदाजन्य रोगकारकों से पादपों को संरक्षित करने में प्रभावकारी पाया गया।
नए रिपोर्ट किए गए रोगों केलिए नियंत्रण विकसित किए गए - पुष्पगुच्छ शीर्णता, मूल सड़न एवं पार्न-पीतन
वाइरल रोगों के द्रुत निदान के रूप में "एलिसा" पाइलट जाँचों में प्रमाणित किया गया ।
वैनिला और शाकीय मसालों के रोगों के रोगकारकों को पहचाना गया और नियंत्रण तरीके विकसित किए गए।
संपुटिका सड़न रोग के प्रकोप की पूर्व सूचना देने हेतु सुनिश्चित मॉडल पर अध्ययन शुरू किया गया।
इलायची में रोग प्रकट होने में जलवायू परिवर्तन के प्रभाव पर अध्ययन चलाया गया।
जैव अभिकारक उत्पादन:
ट्राइकोडेरमा संवर्धन स्यूडोमोनास
कीटविज्ञान प्रभाग
इलायची के प्रमुख नाशकजीवों पर करीब चालीस रासायनिक कीटनाशियों के रूपायनों का मूल्यांकन किया गया।
रोपकों को न्यूनतम सांद्रता में प्रभावी कीटनाशियों की सिफ़ारिश की गई।
कीटनाशी प्रयोगों की संख्या 12-14 छिटकाव/वर्ष से 5-7 प्रतिवर्ष होकर कम हो गई। जिससे कि नाशकजीवनाशियों की मात्रा और प्रयोग की लागत कम हो गई ।
फरवरी के दौरान शुष्क इलायची पत्तों(कृषीय नियंत्रण) के प्रूनिंग (काट-छांट), और इलायची पाउचों के निचले एक तिहाई भाग पर कीटनाशियों की पाँच छिड़काव/वर्ष का प्रयोग, थ्रिप्स नियंत्रण केलिए लाभकारी पाया गया। इस प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन रोपकों के खेत में किया गया।
केरल, कर्नाटक एवं तमिलनाडु की इलायची रोपणियों में नाशकजीवनाशी छिड़काव समय-सूची बनाई गई जिसने प्रमुख एवं गौण पर्णीय नाशकजीवों को कारगर ढंग से नियंत्रित किया।
इलायची मूल भृंगक प्रबंधन केलिए यांत्रिक नियंत्रण और भृंगकों के रासायनिक नियंत्रण समाहित एक आई पी एम तैयार किया गया और रोपकों के खेत में प्रदर्शित किया गया।
यह पाया गया है कुछ पौधा निचोड़ों को इलायची प्ररोह वेधक और रोमिल इललियों पर वृद्धि नियामक एवं कीटनाशी विशेषताएं होती है।
अदरक वेधक पर नीम आधारित कीटनाशी प्रभावकारी पाए गए ।
इलायची मूल गांठ सूत्रकृमि एवं मेलोयाडोगिन इनकोग्निटा(प्लांट पैरासीटिक सूत्रकृमि-पी पी एन) के प्रबंधन हेतु कीट रोगकारक सूत्रकृमियों (ई पी एन) हैटेरोरैब्डाइटिस इंडिका का प्रयोग करते हुए एक प्रभावकारी प्रबंधन तंत्र विकसित किया गया।
सफ़ेद मक्खी केलिए एक प्रभावकारी प्रबंधन [व्यवहार नियंत्रण -पीले चिपचिपे पाश से वयस्क मक्खी को फंसाना और निंफ़ों के नियंत्रण हेतु पत्तों की निचली सतह पर 0.5% नीम तेल निलंबन ] भी विकसित किया गया और इसकी सिफ़ारिश की जा रही है।
ई पी एन कैडावारएवं इलायची में इसका प्रयोग
बड़ी इलायची
उच्च उपजवाली लाइनों और अन्य विशिष्ट गुणों के आधार पर आर आर एस, आई सी आर आई के पाङताङ और कबी के अनुसंधान फार्मों में 254 प्राप्तियों सहित जर्मप्लासम संरक्षणालय स्थापित करके बनाई रखी गई ।
दो उच्च उपज देनेवाली किस्में निर्मोचित की गईं: सोव्निउपजाति से चयन द्वारा आई सी आर आई सिक्किम-1 और आई सी आर आई सिक्किम-2(उपज शाक्यता 800 की.ग्रा./हे.)
फसल का विस्तृत घटनाविज्ञान तैयार किया गया।
गहन प्रबंधन के अंतर्गत बड़ी इलायची का आर्थिक जीवनकाल (15 सालों के रूप में) तय किया गया।
बड़ी इलायची की मिट्टी की उर्वरता-स्थिति का मूल्यांकन किया गया ।
माध्य पी एच – 5.48
जैव कार्बन – 3.2%
उपलब्ध नेत्रजन – 29.64
फोसफोरस - 1.37
पोटैशियम - 17.87 (मी.ग्रा./100 ग्रा.)
मिट्टी में उच्च नेत्रजन और मध्यम फोसफरस और पोटैशियम पाए गए।
बड़ी इलायची के प्रमुख नाशकजीवियों पर अध्ययन किया गया जैसे पर्ण इल्ली(आर्टोना कोरिस्टा) प्ररोह मक्खी (मेरोक्लोरोप्स गइमोरफस), तना वेधक (ग्लिफप्टेरिक्स-एस पी) एवं सफ़ेद भृंगक (होलोट्रिचिया एस पी पी ) और बड़ी इलायची के नाशकजीवों के प्रबंधन में आई पी एम तंत्र विकसित किए गए।
बड़ी इलायची में प्रमुख परागणकरी के रूप में (बांबिल) गूंज मक्षिका (बोम्बाइस होमोरोइडलिस एवं बी।ब्रोविसेप्स) पहचानी गई।
जैव-अभिकरकों का प्रयोग करते हुए मू-भृंगक प्रबंधन केलिए तंत्र
बड़ी इलायची (अमोमम सुबुलाटम रोक्स.) के प्रमुख रोगों पर अध्ययन किया गया और पहचाना गया।
बड़ी इलायची के दो प्रमुख वाइरल रोग चिर्के और फुर्के हैं। रोग प्रसारण, उत्तरजीविता एवं प्रबंधन तैरा किया गया।
बड़ी इलायची का प्रमुख कवकीय रोग अंगमारी (कोलेटोट्रिम गूलोईस्पेरोड्स) को पहचाना गया।
अन्य दो कवकीय रोग पर्ण रेखा और फोमा पर्ण चित्ती पहचाने गए हैं।
स्पाइक का दीर्घाकार होना, विलंबित पक्वता जैसे जीवेतर घटकों को कारण होनेवाली समस्याओं को अध्ययन किया गया।
अपेक्षाकृत अंगमारी सहिष्णु के रूप में 64 रोग मोचन लाइनों का संकलन किया गया और तीन प्राप्तियों (एस सी सी 12, 22 व 179) को पहचाना गया और ये खेत मूल्यांकन के तहत है।
जैव नियंत्रण अभिकारकों को पहचाना गया, उनका बहू-मात्रिक गुणन किया गया और सिक्किम व पश्चिम बंगाल के दार्जीलिंग जिले में खेती की जैव प्रणाली के अधीन रोग प्रबंधन हेतु मांग के आधार पर कृषकों को उनकी सप्लाई की गई।
आई सी आर आई, आर आर एस, तादोंग में जैव नियंत्रण अभिकारकों के उत्पादन और विपणन हेतु सुविधा की स्थापना की गई।
जैव नियंत्रल अभिकारकों के बहू-गुणन हेतु पाङताङ के आई सी आर आई अनुसंधान फार्म में 80 लीटर क्षमतावले किण्वक की स्थापना की गई।
वैज्ञानिक तौर पर बड़ी इलायची सुधरी भट्टी प्रणाली को आई सी आर आई, आर आर एस, तादोंग द्वारा विकसित किया गया और इमदादी योजनाओं के ज़रिए गान्तोक और दार्जीलिंग क्षेत्र में स्पाइसेस बोर्ड(विकास) द्वारा प्रचार में लाईं गईं।
बड़ी इलायची का गुणवत्ता सुधार तकनीक का मनकीकरण, सुधरी क्यूरिंग तकनोलजी और संसाधित संपुटिकाओं के पोलिशिंग और ग्रेडेशनके ज़रिए किया गया।
बड़ी इलायची पर संकरण अध्ययन
आई सी आर आई सुधरी भट्टी के इस्तेमाल करते हुए बड़ी इलायची की क्यूरिंग की गई संपुटिकाएँ