कालीमिर्च

कालीमिर्च
वानस्पतिक नाम
पाइपर निग्रेम एलपरिवार
पिपेरेसीवाणिज्यिक अंग
फलविवरण
कालीमिर्च प्राय: दक्षिण भारत के गरम, नमीवाले इलाकों में पायी जानेवाली चढनेवाली चिरस्थाई झाडी पाईपर निग्रम की सूखी पक्व फलियाँ हैं। कालीमिर्च थामों पर चढाकर 5-6 मीटर ऊँचे, 1-2 मीटर व्यास के स्तंभों के रूप में बढाई जाती है। चढनेवाले लकडीनुमा तनाओं पर प्रत्येक गांठ पर लिपदनेवाली जडों सहित सूजी हुई गांठ होती हैं जो बेल को टेक या अधानी के पेडों पर सटकर रहने में मदद देती है। इनका सीधा ऊर्ध्व बढनेवाला मुख्य तना होता है और अपस्थानिक मूल के बिना लघु पोरियोवाले पत्तों के कक्ष से पार्श्विक अंकुर भी होते हैं। ऐसी शाखाओं में , सीमांत कलिकाएँ एक स्पाइक के रूप में विकसित होते हैं तथा अन्य गौण कलिकाएँ और बढ जाती हैं।
इसकी जडें 75-100 से.मी. घेरा एवं गहराई तक सीमित रहती है। पुष्पण एक लटकता स्पाइक है जो 50-150 फूलोंवाला और 3-15 से.मी. लंबा रहता है। फूल बहुत छोटे सफेद फीके पीले, मांसल ठंठल पर छल्लेदार पाए जाते हैं। इसका सहजत: स्वपरागण होता है और जल बिन्दुकों की मौजूदगी से पराग वितरण में मदद मिलती है। फल एकल गुठलीदार फल है जिसको अक्सर फली कहा जाता है । यह आकार में 'गोल', रंग हरा और पकने पर लाल बनता है ।
व्युत्पत्ति और प्रसारण
कालीमिर्च भारत के दक्षिण-पश्चिमी घाटों के पहाडों से उदभूत माना जाता है । यह अपने व्युत्पत्ति स्थान के अलावा इन्दोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका, थाइलैंड, चीन, वियतनाम, कम्बोडिया, ब्रेज़ील, मेक्सिको एवं ग्वाटिमाला में भी अब यह बढाई जाती है। कालीमिर्च केलिए गरम और नम जलवायु अपेक्षित है और 20 डिग्री उत्तर एवं दक्षिण अक्षांश में, एम एस एल से 1500 मीटर की ऊँचाई पर बढती है। यह फसल 10 डिग्री से 40 डिग्री से. के बीच का तापमान बरदाश्त करती है। कालीमिर्च केलिए 125-200 से.मी. की सुवितरित वार्षिक वर्षा आदर्श मानी जाती है ।
उपयोग
कालीमिर्च अपने परिरक्षी मूल्य के कारण व्यापक तौर पर मांस पैककर्ताओं द्वारा एवं कैनिंग, उपचार, बेकिंग में प्रयुक्त की जाती है। पकवानों को ठीक ठीक बघारने की अपनी क्षमता के कारण स्वाद और सुगंध के कारगर ढंग से समायोजन में पकाई के अंतिम चरण में इसको छिटक दिया जाता है। दुनियाभर पकाई में एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में कालीमिर्च प्रयुक्त होती है और यह वाणिज्यिक महत्ववाले बहुत सारे खाद्याान्नों का यह अनिवार्य घटक है। मसाले मिश्रणों में भी एक घटक के रूप में इसका प्रयोग होता है। सलाद के मसाले में सफेद कालीमिर्च का प्रयोग किया जाता हैं, जहाँ कालीमिर्च के काले दाने नापसंद है। इस्तेमाल किए जानेवाले अन्य उत्पाद कालीमिर्च तेल, तैलीराल, माइक्रो एनकैप्सुलेटेड पेप्पर, ग्रीन पेप्पर इन ब्राइन, निर्जलीकृत हरी कालीमिर्च, प्रशीतित कालीमिर्च आदि है । कालीमिर्च भारतीय चिकित्सा-प्रणाली का एक अनिवार्य घटक है। कालीमिर्च तैलीराल का तेज़ तत्व पैपरीन जैव-उपलब्धता बढाने में सहायक है और इसलिए औषध निर्माण में प्रयुक्त किया जाता है। कालीमिर्च की व्यावहारिक गुणविशेषताएँ उसका पीडा नाशक, ज्वरहारी, प्रति-ऑक्सीकारक एवं जीवाणुनाशी होना है।
भारतीय नाम
हिन्दी - कालीमिर्च बंगला - काला मोरिच, गोल मोरिच गुजराती - कलमारी , कालामिरिच कन्नड - कारे मेनसु कश्मीरी - मरुटिस मलयालम - कुरुमुलकु , नल्लमुलकु मराठी - मिरा , काली मिर्च उडिया - गोल मरिचा पंजाबी - कालीमिर्च संस्कृत - मरिच उष्ण , हपुषा तमिल - मिलगु तेलुगु - मिरियाला तिगे उर्दु - कालीमिर्च , स्याह मिर्च
विदेशी नाम
Spanish : Pimienta French : Poivre German : Pfeffer Swedish : Peppar Arabic : Filfil Aswad Dutch : Peper Italian : Pepe Portuguese : Pimenta Russian : Pyerets Japanese : Kosha Chinese : Hu-Chiao